मित्र की कौशल देख मित्र‌ जब भरमा जाये तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया - शिव कुमार खरवार "राही"

मित्र की कौशल देख मित्र‌ जब भरमा जाये  तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया  -  शिव कुमार खरवार "राही"

अचानक मन में विचार आया हमारे देश में प्रतिभा की कमी नहीं है।हमारे यहां विद्वानों के पास धर्य है ध्यान है त्याग है वलिदान  है नियत है निति है कर्म है सत्कर्म है पुजा है पाठ है प्रकृति परमात्मा में पूर्ण आस्था है। माननीय प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने की प्रेरणा भी लगातार दे रहें । लेकिन हमारे अपने हरिजन गिरजन दास दस्यु गरीब मजदूर किसान के खून में उबाल क्यू नही। अपने परिवार के बुढ़े -बच्चे के प्रतिभा का सम्मान क्यू नही कर पाते ।


प्रकृति द्वारा निर्धारित दायित्वों का हम एहसास क्यू नही कर पाते। बार -बार लगातार हम गुलामी की ओर क्यों खिंचे जाते हैं। हम अपने जैसा 130 करोड़ की आवादी में एक ब्यक्ति का निर्माण क्यू नही कर पाते। कहानी को सोच बहुत बड़ी है ।


अपने प्रिय भाई स्नेह कमल जी को मेरी अपनी रचना समर्पित है। उन सभी को भी समर्पित है। जो हमारे भाव को समझ सके । हमें लगता है। जो सारगर्भित हिन्दू परिभाषा होना चाहिए वह प्रस्तुत है। बाकी आप सबके स्नेह प्रेम का आकांक्षी हूं।


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शिव कुमार खरवार राही
राष्ट्रीय प्रवक्ता
अखिल भारतवर्षिय खरगवंशी ( खरवार ) क्षत्रिय महासभा


बूथ लेवल का कार्यकर्ता BJPबाल स्वयम् सेवक ( R S S )
प्रेरणा श्रोत आदरणीय ह़दय नारायण पाण्डेय जी

प्रस्तुत है मेरी रचना 

जब आसमान में कोई हलचल ना हो चारों तरफ खामोशी हो 
वारिस की बूंदों से जमी के सारे जीव कनकना जाये।
आप की आवाज सुनने को बेताब हो।
तो समझ लो हिन्दूत्व  कुछ हार गया ।
दलित पिछड़ा सामान्य में कोई जब उलझता हो
बनता काम विगड़ जाये उसको नहीं समझता हो।
मित्र - मित्र भी होता मित्र शत्रु  जब बनता हो ।
मित्र की कौशल देख मित्र‌ जब भरमा जाये 
तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया।
हसरत लिए जन्म होता कुछ करने की तमन्ना हो ।
अवसर यदि जब मिल जाये सब कोरे कागज की पन्ना हो 
कहां से ले आऊं खिलखिलाहट कहीं खलबली कहीं मंनचली रिश्तों का दोहाई देता हो ।
तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया।
जो दुसरों के दुःख को दुःख ना समझता हो
किसी के सुख से बेचैनी हो
बार - बार यदि दुखों का कारण बनता हो
उसकी अन्त का झलक आपको दिखता हो
तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया।
यह कहानी उनकी है जो कछु हसरत लिए जीता हो ।
अपनी ही प्रजाति को सदैव निगलता हो 
ईश्वर रुपी राजा से प्रजा को दुर करता हो
तो समझ लो हिन्दूत्व के भाव का सार मर गया ।
तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया।
हिन्दू त्वं को कोई जाती धर्म और मजहब समझता हो
और ईश्वर के प्रति विश्वास सर्व भाव की सेवा ना हो
तो समझ लो हिन्दूत्व कुछ हार गया।

शिव कुमार खरवार राही